किशोर कुमार: सुरों का जादूगर जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता 13 अक्टूबर पुण्यतिथि
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
किशोर कुमार न सिर्फ एक गायक थे, बल्कि वे एक सम्पूर्ण कलाकार थे। उन्होंने अभिनय, निर्देशन, लेखन, संगीत निर्देशन और यहां तक कि प्रोड्यूसिंग तक में हाथ आजमाया और सफलता भी पाई। लेकिन जिस चीज़ ने उन्हें अमर बना दिया, वो है उनकी आवाज़।उनकी गायकी में एक अजीब सी मासूमियत, मस्ती, और दर्द का मेल होता था। चाहे वो "मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू" जैसी रूमानी धुन हो या "जिंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मकाम" जैसी भावुक रचना, किशोर दा की आवाज़ हर गीत को आत्मा देती थी।
किशोर कुमार की आवाज़ में वो अपनापन था जो हर वर्ग, हर उम्र के व्यक्ति को छू जाती थी। वे तकनीकी तौर पर क्लासिकल सिंगर नहीं थे, लेकिन उनकी आवाज़ में जो भावनात्मक गहराई थी, वो शायद ही किसी और में देखने को मिले। उन्होंने अपनी गायकी से यह साबित किया कि "फीलिंग्स" और "इमोशन" तकनीक से कहीं ऊपर होते हैं।
किशोर दा की शख्सियत भी उतनी ही अनूठी थी जितनी उनकी गायकी। वे किसी भी बंधन में नहीं बंधते थे — न फिल्म इंडस्ट्री के नियमों में, न समाज की परंपराओं में। यही वजह थी कि वे अक्सर 'अल्हड़', 'सनकी' या 'मूड स्विंग्स' वाले कहे जाते थे। लेकिन यही विद्रोहीपन उन्हें सबसे अलग बनाता था।आज किशोर कुमार हमारे बीच भौतिक रूप से नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी हर रेडियो स्टेशन, हर प्लेलिस्ट, और हर दिल में ज़िंदा है। नई पीढ़ियाँ भी उनके गानों को सुनती हैं, गुनगुनाती हैं और उनसे जुड़ती हैं।किशोर कुमार सिर्फ एक नाम नहीं, एक अहसास हैं। एक ऐसी धुन जो समय के हर पड़ाव पर प्रासंगिक रहती है। उनकी जयंती पर, हम उन्हें सलाम करते हैं — उस कलाकार को जिसने हमें सिखाया कि ज़िंदगी चाहे जैसी भी हो, उसे पूरी शिद्दत और दिल से जीना चाहिए।
13 अक्टूबर — यह तारीख भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि एक युग की याद है। आज महान पार्श्वगायक, संगीतकार, अभिनेता, और एक असाधारण कलाकार किशोर कुमार की जयंती है। उनका जन्म 13 अक्टूबर 1929 को मध्यप्रदेश के खंडवा में हुआ था। उनका असली नाम आभास कुमार गांगुली था, लेकिन दुनिया उन्हें किशोर दा के नाम से जानती है।किशोर कुमार न सिर्फ एक गायक थे, बल्कि वे एक सम्पूर्ण कलाकार थे। उन्होंने अभिनय, निर्देशन, लेखन, संगीत निर्देशन और यहां तक कि प्रोड्यूसिंग तक में हाथ आजमाया और सफलता भी पाई। लेकिन जिस चीज़ ने उन्हें अमर बना दिया, वो है उनकी आवाज़।
उनकी गायकी में एक अजीब सी मासूमियत, मस्ती, और दर्द का मेल होता था। चाहे वो "मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू" जैसी रूमानी धुन हो या "जिंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मकाम" जैसी भावुक रचना, किशोर दा की आवाज़ हर गीत को आत्मा देती थी।
किशोर कुमार की आवाज़ में वो अपनापन था जो हर वर्ग, हर उम्र के व्यक्ति को छू जाती थी। वे तकनीकी तौर पर क्लासिकल सिंगर नहीं थे, लेकिन उनकी आवाज़ में जो भावनात्मक गहराई थी, वो शायद ही किसी और में देखने को मिले। उन्होंने अपनी गायकी से यह साबित किया कि "फीलिंग्स" और "इमोशन" तकनीक से कहीं ऊपर होते हैं।
किशोर दा की शख्सियत भी उतनी ही अनूठी थी जितनी उनकी गायकी। वे किसी भी बंधन में नहीं बंधते थे — न फिल्म इंडस्ट्री के नियमों में, न समाज की परंपराओं में। यही वजह थी कि वे अक्सर 'अल्हड़', 'सनकी' या 'मूड स्विंग्स' वाले कहे जाते थे। लेकिन यही विद्रोहीपन उन्हें सबसे अलग बनाता थाआज किशोर कुमार हमारे बीच भौतिक रूप से नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी हर रेडियो स्टेशन, हर प्लेलिस्ट, और हर दिल में ज़िंदा है। नई पीढ़ियाँ भी उनके गानों को सुनती हैं, गुनगुनाती हैं और उनसे जुड़ती हैं।
किशोर कुमार सिर्फ एक नाम नहीं, एक अहसास हैं। एक ऐसी धुन जो समय के हर पड़ाव पर प्रासंगिक रहती है। उनकी जयंती पर, हम उन्हें सलाम करते हैं — उस कलाकार को जिसने हमें सिखाया कि ज़िंदगी चाहे जैसी भी हो, उसे पूरी शिद्दत और दिल से जीना चाहिए।
किशोर दा, आपकी आवाज़ कभी नहीं रुकेगी।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें